Friday, 8 September 2017

भौतिक विज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

भौतिक विज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य - Important Facts Of Physics

अतिचालकता Superconductivity

अतिचालकता ऐसी धातुओं अथवा वस्तुओं के संयोग से जनित भौतिक गुण हैं, जो विद्युत् प्रवाह में किसी प्रकार का प्रतिरोध उत्पन्न न करें तथा विद्युत् संचार के कारण उनमे तापीय ऊष्मा का उत्सर्जन न हो। ऐसा चालक व्यवहारिक अनुप्रयोग में निम्न तापमान पर अतिचालकता को प्रदर्शित करने लगता हैं। राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने डोप्ड बेरियम कॉपर ऑक्साइड सिस्टम में अतिचालकता ऋण स्थान में प्राप्त करने में अद्भुत सफलता प्राप्त की है। भारत सरकार ने उच्च स्तरीय समिति का गठन करके अतिचालकता के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थानों के शोध कार्य में सामंजस्य एवं समन्वय बनाये रखा है। इस संयोजित कार्यक्रम का उद्देश्य एक प्रकार का स्क्यूड (SQUIDS- Superconducting quantum interference devices) बनाने का है, जो की द्रव नाइट्रोजन में 77K तापक्रम पर अतिचालकता प्रावस्था उत्पन्न कर सके\ इस सन्दर्भ में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने ऐसे पदार्थों का संश्लेषण किया है, जो -40°C के ताप पर ही अतिचालकता के रूप में कार्य करने लगते हैं। यह एक महत्वपूर्ण खोज है।

अतिचालकता कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय वैज्ञानिक निम्नलिखित सामग्री उत्पादन करने का प्रयास कर रहे हैं-

1. किस प्रक्रिया द्वारा उच्च तापक्रम पर अतिचालकता सामग्री का उत्पादन हो।

2. किस विशेष प्राविधिकी अतिचालक का उपयोग करके उच्च क्षेत्रीय चुम्बकों का उत्पादन हो।

3. किस विशेष प्राविधिकी की सहायता से उच्च स्तरीय क्षेत्र की विद्युत् का उत्पादन हो।

4. किस विशेष प्राविधिकी के माध्यम से सिरेमिक यौगिकों की सामग्री को तारों में खींचा जाये।

5. इस प्रकार इन मूलभूत अनुसंधानों द्वारा विद्युत, उद्योग, विद्युत संचार एवं इलेक्ट्रोनिक उद्योग में क्रांति लायी जा सकती है।

अर्धचालक Semiconductor

ये कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं, जिनकी इलेक्ट्रॉनिकीय संरचना इस प्रकार की होती है की कहीं इलेक्ट्रान मुक्त हो जाता है और कहीं रिक्ति (Hole) बन जाती है। इस प्रकार ये इलेक्ट्रॉनिक्स व ट्रांजिस्टर उपकरणों में प्रयुक्त किये जाने वाले पदार्थ हैं। ये आकार में अत्यंत सूक्ष्म होते हैं और इन्हें गर्म करना आवश्यक नहीं होता है। सुगमता से मुक्त इलेक्ट्रान उपलब्ध होने से विद्युत् धारा उत्पन्न कर सकते हैं। जर्मेनियम व सिलिकॉन ऐसे मुख्य पदार्थ हैं। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इनका उपयोग बढ़ता जा रहा है। रेडियो, टेलीविज़न, कैलकुलेटर, विडियो गेम, मोबाइल फोन आदि अनेक उपकरण बनाने में इन अर्धचालक पदार्थों का उपयोग होता है, जो मानव जीवन के अभिन्न अंग बन गए हैं।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को छोटे से छोटा बनाने के लिए अनेक प्रकार की तकनीकों का उपयोग किया गया, परन्तु उनमे सर्वाधिक उल्लेखनीय अर्धचालक है। अर्धचालक की विद्युत् चालकता, सुचालक पदार्थ की चालकता से कम और कुचालक की चालकता से अधिक होती है।

सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिकी टेक्नोलॉजी द्वारा निर्मित सूक्ष्म कणों ने इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों में कर्न्तिकारी परिवर्तन ला दिए हैं। इस युक्तियों में प्रयुक्त होने वाली बड़ी-बड़ी ट्यूबों  का स्थान इन उपकरणों ने लेकर इन्हें आश्चर्यजनक रूप से छोटा बना दिया है। इन आधुनिक उपकरणों ने चिकित्सा शिक्षा संचार व्यवस्था और वस्तुतः जीवन के प्रत्येक पहलू में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिए हैं।

नया सुपरकंडक्टर New Superconductor

हल में ही जापान के राष्ट्रीय धातु अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक नया उच्च-ताप अतिचालक (सुपरकंडक्टर) विकसित किया है। यह अतिचालक बिस्मिथ-स्ट्रोंशियम-कैल्शियम-कॉपर ऑक्साइड मिश्र धातु से तैयार किया गया है। इसकी विशेषता यह है की इसके निर्माण में किसी दुर्लभ मृदा (Rare Earth) तत्व का प्रयोग नहीं किया गया है। अब तक जो भी उच्च ताप अतिचालक विकसित किये गए हैं, उनमें यूट्रियम और लेंथेनम जैसे दुर्लभ मृदा तत्वों का उपयोग किया गया है। दुर्लभ मृदा तत्व बहुत दुर्लभ न होने के बावजूद काफी महंगे होते हैं।

इस नये अतिचालक (Bi, Sr, Ca, Cu2O3) को कई घंटों तक 900°C से कुछ ही कम ताप पर एनिल करने से 120K पर इसके प्रतिरोध में कमी आनी शुरू हो जताई है और 79K पर उसका प्रतिरोध शून्य हो जाता है। वैसे इसके प्रतिरोध में 107K के आस-पास एकाएक कमी आ जाती है। इसका रंग काला है, पर अब तक इसकी क्रिस्टलीय संरचना ज्ञात नहीं की जा सकी है।

फाइबर ऑप्टिक्स Fibre Optics

दूर संचार के क्षेत्र में क्रन्तिकारी परिवर्तन ला देने वाली यह एक नवीनतम तकनीक है। कांच के बने अत्यंत बारीक़ तंतु (Fibres)  का उपयोग संचारी तारों (Cables) के रूप में किया गया है। इन बारीक़ सूत्र तंतुओं ने संचार माध्यमों की परम्परागत विधियों-  तांबे के तार, माइक्रोवेव आदि को कहीं पीछे छोड़ दिया है और इनसे सैकड़ों गुना अधिक कार्य बहुत कम समय में और बहुत कम लगत पर संपन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए- बाल ले समान महीन फाइबर तकनीक से टीवी, कंप्यूटर तथा कार्यालयों के टेलेफोनों से संपर्क किया जा सकता है। एक सामान्य तांबे के तार की तुलना में इस पर 500 गुना संचार भार आरोपित कर सकते हैं। जो सन्देश एक तांबे के तार द्वारा काफी देर में पहुंचाए जाते हैं, वे इस फाइबर तकनीक द्वारा केवल एक सेकंड में पहुँच जाते है तथा इसके द्वारा दुसरे स्थान तक पहुँचने वाले संकेत बिलकुल शुद्ध व स्पष्ट होते हैं। इस प्रकार प्रकाश की गति से सन्देश संकेतों को स्पष्ट व शुद्ध रूप से तत्काल संचालित करने की यह एक सस्ती और उपयोगी तकनीक है।

1960 में अमेरिका में न्यूजर्सी स्थित बेल लेबोरेटरी में विकसित इस युक्ति का प्रयोगात्मक परिक्षण शिकागो में सन 1973 में किया गया। इसके अविष्कारक डॉं. फिलिप एंडरसन को उनके अध्ययन, ‘कांच की इलेक्ट्रॉनिक संरचना में प्रकाशिक अध्ययन’ के लिए 1977 में नोबेल पुरुस्कार प्राप्त हुआ। अब इसके प्रयोग से सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में तथा दूर संचार युक्तियों में चमत्कारिक प्रगति हुई है। कंप्यूटर टेलीप्रिंटर, टीवी, टेलीफोन रोबोट आदि उपकरणों का आकार अब सूक्ष्मतम और सरल बनाया जा सकेगा तथा सन्देशवाहन की लगत को बहुत कम किया जा सकेगा।

इलेक्ट्रॉनिकी Electronics

इलेक्ट्रॉन किसी तत्व के नाभिक में उपस्थित वह सूक्षम व ऋण आवेशित कण है जो नाभिक के चारो ओर एक नियत कक्ष में चक्कर लगाता है।

इलेक्ट्रॉन जब क्वार्टज़ क्रिस्टलों के भीतर एक नियत पथ पर गति करता है, तो उससे उत्पन्न प्रभावों को इलेक्ट्रॉनिकी के अंतर्गत रखा जाता है। सबसे पहले यंत्रों में निर्वात ट्यूबों का प्रयोग किया जाता था, जो काफी स्थान घेरते थे। इसी कारण प्राचीन समय में बड़े-बड़े रेडियोग्राम देखने को मिलते थे। धीरे-धीरे  निर्वात ट्यूबों का स्थान ट्रांजिस्टरों व अर्द्ध-चालकों (semi-conductors) ने ले लिया। ये अपेक्षाकृत बहुत कम स्थान घेरते थे, लागत में कम थे तथा बहुत सरल थे। अब इनका स्थान इंटिग्रेटेड सर्किट्स के द्वारा किया जा रहा है। सबसे आधुनिक तकनीक माइक्रोप्रोसेसर या माइक्रोचिप्स की है। माइक्रोचिप्स सिलिकॉन के बने होते हैं तथा इनकी लगत काफी कम होती है।

इलेक्ट्रॉनिकी का आज कृषि संचार, चिकित्सा, रक्षा, उद्योग, अन्तरिक्ष अनुसंधान, इंजीनियरिंग, शिक्षा घरेलु उपयोग के यंत्रों आदि विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ़ इण्डिया की स्थापना 1967 में की गई। प्रौद्योगिकी विकास परिषद् एवं राडार परिषद् भी इलेक्ट्रॉनिकी दिशा में कार्यरत है।

इलेक्ट्रॉनिकी के उपयोग Uses of Electronics

1. उद्योगों में विभिन्न इकाइयों का एक साथ संचालन करने के लिए।

2. दूरस्थ विधि से किसी वस्तु का संचालन करने के लिए, जिसे रिमोट कंट्रोल भी कहा जाता है।

3. खतरे के समय इलेक्ट्रॉनिक अलार्म का उपयोग।

4. इलेक्ट्रॉनिक रोबोटों द्वारा अस्पतालों, होटलों व अन्य विशाल संस्थाओं में कार्यभार कम करने के लिए।

5. टेलीकम्युनिकेशन या दूरसंचार के क्षेत्र में।

6. उपग्रह संचालन के लिए।

7. दूरदर्शन के संचालन में।

8. राडार, मिसाइल, वायुयान, जलयान, अवाक्स व अन्य रक्षा उपकरणों के संचालन में।

9. कंप्यूटर निर्माण में

10. चिकित्सा उपकरणों व निदान सम्बन्धी उपकरणों के निर्माण में।

11. इसका उपयोग घरेलू उपयोग की वस्तुएं बनाने में भी किया जाता है, क्योंकि ऐसी वस्तुएं जहाँ जगह कम घेरती हैं वहीँ इनमे कम उर्जा खर्च होती है एवं सस्ती भी पड़ती है।

इलेक्ट्रॉनिक्स का महत्त्व Significance of Electronics

1. इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण अपेक्षकृत कम स्थान घेरते हैं।

2. इनके उत्पादन की लागत वे रख-रखाव का व्यय बहुत ही कम होता है।

3. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की निर्माण प्रक्रिया बहुत ही सरल है।

4. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खराबियों व बारीकियों को दूर करना बहुत ही आसान है, क्योंकि ये अधिक सरलीकृत हैं।

5. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उर्जा का व्यय बहुत ही कम है। जटिल से जटिल उपकरण अधिकतम 12 वोल्ट विद्युतधारा पर कार्य कर सकता है।

6. इन्हें बैटरी व विद्युत् (D.C. and A.C.) दोनों से चलाया जा सकता है। अतः अचानक बिजली चले जाने पर भी कोई समस्या नहीं होती है।

7. इनकी कार्य प्रणाली अधिक सरल व कम समय लेने वाली होती है, इसलिए ट्रैफिक सिग्नल आदि के क्षेत्र में इनका उपयोग बढ़ रहा है।

8. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दृश्य व श्रव्य (Visual & Audio) दोनों प्रकार के संकेत लिए जा सकते हैं।

लेसर Laser

इसका पूर्ण शब्द विस्तार लाइट एम्पलीफिकेशन बाई स्टीमुलेटेड एमिशन ऑफ रेडिएशन (light amplification by stimulated emission of radiation)। इसकी खोज डॉ. चार्ल्स एच. टॅावेन्स और आर्थर लियोनार्ड शैलो (Charles Hard Townes and Arthur Leonard Schawlow) ने 1960 में की थी। इस प्रक्रिया द्वारा शक्तिशाली मोनोक्रोमेटिक प्रकाश किरण प्राप्त की जाती है जो वायु, गैस एवं कुछ द्रवों के पारदर्शी माध्यम मेँ चल सकती हैं एवं बिना किसी परिवर्तन (Defraction) के लंबी दूरी तक भेजी जा सकती हैं। यह पारदर्शी खिड़कियोँ से प्रक्षेपित की जा सकती हैं तथा इसे एक बिंदु पर केंद्रित कर बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।

कार्यप्रणाली

यदि किसी अणु पर बाहरी ऊर्जा जैसे फोटोन आदि की बौछार की जाए तो अणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर अपनी उच्च कक्षा मेँ चला जाता है। यहाँ से पुनः काफी मात्रा मेँ ऊर्जा का उत्सर्जन करता है। इसी सिद्धांत पर लेसर किरणें उत्पन्न की जाती हैं। लेसर किरणों के उत्पादन के लिए रूबी रॉड (Ruby Rod) काम मेँ ली जाती है।

लेसर किरणों के गुण

1. लेसर किरणें किसी भी पारदर्शक वातावरण मेँ गमन कर सकने मेँ समर्थ हैं।

2. ये बिना ऊर्जा का क्षय किए काफी दूर तक गमन कर सकती हैं।

3. इन्हें एक स्थान पर केंद्रित करके काफी ऊष्मा उत्पन्न की जा सकती है।

4. इनसे उत्पन्न होने वाला प्रकाश कला सम्बद्ध (cohrent) प्रकाश होता है।

लेसर का उपयोग

1. किसी ठोस कठोर पदार्थ के पिघलाने, जलाने व वेल्डिंग में।

2. किसी पदार्थ या दूरस्थ वक्त की दूरी ज्ञात करने मेँ।

3. ध्वनि व चित्रों के संकेतों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने मेँ।

4. चिकित्सा विज्ञान मेँ, विशेष रुप से बिना ऑपरेशन के शल्य चिकित्सा मेँ आजकल पथरी के निदान मेँ तथा कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए।

5. चिकित्सा विज्ञान मेँ शरीर की आंतरिक व्याधियोँ का पता लगाने के लिए।

द्रव क्रिस्टल Liquid Crystal

कैलकुलेटर, घड़ियों एवं अन्य उपकरणों में अंको को दर्शाने के लिए द्रव क्रिस्टलों का प्रयोग किया जाता है। द्रव क्रिस्टल, द्रव की संघनित अवस्था होती है। उपकरण मेँ गतिज प्रकीर्णन के समय विद्युत क्षेत्र के प्रभाव मेँ आकर ये क्रिस्टल चमककर दिखाई देते हैं।

रोबोट Robot

एक एसी स्वचालित मशीन है जो मानव की भांति काम करता है और उसके कार्यात्मक घटक भी मानव से बहुत कुछ मिलते जुलते हैं लेकिन आवश्यक नहीँ है की रोबोट का वाह्य स्वरूप मानव से मिलता जुलता हो, वास्तव मेँ यह एक प्रकार की मशीन है, जिसमेँ भुजा, पैर आदि के कार्य करने के लिए अनेक घटक होते हैं। रोबोट शब्द का सर्वप्रथम उपयोग चेकोस्लोवाकिया के प्रसिद्द नाटक लेखक कारेल कापैक (Karel Čapek) ने अपने नाटक रोससम्स यूनिवर्सल रोबोट्स (Rossum’s Universal Robots) मेँ किया था। यह शब्द चेक भाषा मेँ रोबोटा से लिया गया है जिसका अर्थ है- ‘बंधुआ मजदूर’।

औद्योगिक रोबोट

आजकल अलग अलग कार्योँ के लिए अलग-अलग प्रकार के रोबोट बनने लगे हैं। कारखानो मेँ काम करने के लिए औद्योगिक रोबोट विकसित कर लिया गये हैं। ये अनेक ऐसे कार्य कर सकते हैं, जिन्हें बलवान से बलवान व्यक्ति अपनी शारीरिक सीमाओं के कारण नहीँ कर सकता है। रोबोट्स सरलता से लोहे की तपती हुई छड़ को उठा सकता है, जबकि मनुष्य के लिए ऐसा करना असंभव है। रोबोट बिना थके अधिक क्षमता और तेजी के साथ काम कर सकता है। आर्थिक दृष्टि से यह अन्य मशीनों की तुलना मेँ बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। अमेरिका, रुस, जापान, आदि विकसित देशों ने ऐसी\ रोबोट मशीनें बना ली हैं, जो वैज्ञानिक शोध कार्य भी कर सकती हैं। विश्व मेँ आज ऐसे रोबोट विकसित कर लिए गए हैं, जो सैनिक और व्यापारिक कार्यो मेँ प्रयोग किए जा रहे हैं। लगभग एक वर्ष पूर्व ‘कनिष्क यान’ के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उसके ब्लैक बॉक्स को समुद्र की विशाल गहराइयों निकालने के लिए नाम स्कारैब नामक रोबोट (स्वचालित पनडुब्बी) का इस्तेमाल किया गया था। वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए ऐसे रोबोट विकसित हो गए हैं। जो रेडियोधर्मी वातावरण मेँ सरलता से काम कर सकते हैं। नाभिकीय भट्टियोँ मेँ भी रोबोटों का विकास कर लिया गया है। अंतरिक्ष अनुसंधानों के लिए अनेक प्रकार के रोबोट बना लिए गए हैं। जो दूरस्थ ग्रहों से धरती के वैज्ञानिकों को सूचनाएं भेजते हैं।

आज वैज्ञानिक और इंजीनियर अधिक से अधिक परिष्कृत रोबोटों का निर्माण करने का प्रयत्न कर रहे हैं, इनकी कार्यक्षमता मनुष्य से कहीँ अधिक है ही, मानसिक क्षमता मेँ भी ये मनुष्य को पीछे छोड़ते जा रहे हैं।

जापान की राजकीय संस्थान ने एक ऐसा रोबोट तैयार किया है, जो दूरसंवेदी युक्तियोँ की सहायता से दीवार पर भी चढ़ाया जा सकता है। यह रोबोट मकड़ी की भांति दीवार पर चढ़ जाता है। इसका नाम स्पाइडर मार्क-111 रखा गया है। समझा जाता है कि इसका प्रयोग उन स्थलों पर किया जाएगा जो मनुष्य के लिए खतरनाक समझे जाते हैं। यह ऊंची दीवारो मेँ आने वाली दरारों का पता लगा सकेंगा तथा सफाई भी कर सकेगा।

कैट स्कैनर  CAT Scan

CAT शब्द कंप्यूटराइज्ड एक्सियल टोमोग्राफी (computerized axial tomography) का संक्षिप्त रुप है। इसका उपयोग केवल रोग के निदान के लिए ही नहीँ बल्कि उसके सही इलाज का पता लगाने के लिए भी किया जाता है। कैट स्कैनर का आविष्कार ब्रिटिश भौतिकशास्त्री डॉ. हाउसफील्ड और अमेरिकी भौतिकशास्त्री कोरमैक (Godfrey Hounsfield of EMI Laboratories, England and by South Africa-born physicist  Allan McLeod Cormack of Tufts University, Massachusetts) मेँ सन 1972 मेँ किया था, जिस पर उन्हें 1979 मेँ आयुर्विज्ञान (Medicine) का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। इस यंत्र के आविष्कार से पहले रोग का पता लगाने के लिए कई प्रकार से शरीर के एक्स-रे कराने पड़ते थे तथा ऐसे परीक्षणों मेँ शारीरिक कष्ट के साथ-साथ खतरा भी होता था। कैट-स्कैनर से केवल एक ही परीक्षण से रोगोँ का पता चल जाता है और सफल इलाज किया जा सकता है। इसमेँ न शारीरिक कष्ट होता है और न खतरा।

कैट स्कैनर वास्तव मेँ एक्स-रे उपकरण का ही एक विकसित रुप है जिसमे तीन विमाओं वाले त्रि-आयामी चित्र प्राप्त होते है, अर्थात चित्र लंबाई, चौड़ाई के साथ ही गहराई या मोटाई या ऊंचाई को दर्शाते हैं। इस उपकरण मेँ एक एक्स-रे स्रोत होता है, बीच मेँ रोगी के लिए मोटर चालित स्ट्रेचर होता है और उसके दूसरी और एक डिटेक्टर नामक यंत्र होता है। डिटेक्टर एक कंप्यूटर से सम्बद्ध होता है और कंप्यूटर एक टीवी स्क्रीन से जुडा होता है। कंप्यूटर के गणित सूत्र और चित्र टीवी स्क्रीन पर चित्रित होते रहते हैं। स्कैन हो रहे क्षेत्र से गुजर कर एक्स-रे डिटेक्टर तक पहुंचती हैं। डिटेक्टर इन्हें विद्युत संकेतों के रुप मेँ कंप्यूटर तक पहुंचाता है। कंप्यूटर प्राप्त संकेतो को गणित सूत्र का प्रयोग करते हुए चित्र का रुप देखकर टीवी स्क्रीन पर उभारता है। भिन्न-भिन्न उतक अपने घनत्व (लंबाई, चौड़ाई, मोटाई) के अनुसार स्पष्ट रुप से स्क्रीन पर दिखाई देते हैं।

कैट स्कैनर दो प्रकार के होते हैं। पहला हेड स्कैनर, जो मस्तिष्क मेँ ट्यूमर, सर की चोट की वजह से रक्त स्राव या ब्रेन हैमराज की आदि मेँ प्रयोग में आता है। दूसरा बॉडी स्कैनर होता है, जो अपेक्षाकृत बहुत बड़ा होता है तथा शरीर के अन्य भागोँ का परीक्षण करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

इलेक्ट्रान तथा कैथोड किरणें

सामान्य दाब पर गैसे प्रायः विद्युत् कुचालक होती (Non Conductor of Electricity) हैं। परन्तु यदि गैस का दाब काफी कम कर दिया जाए तो उनमेँ विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है। एक बंद नली जिसे विसर्जन नली (discharge tube) कहते हैं, में न्यूनीकृत दाब पर विद्युत विसर्जन (Electric discharge) करने पर नली के ऋणोंद (Cathod) से नीली दीप्ति के रुप मेँ एक प्रकार के कणों का पुंज निकलता है। 1876 में गोल्डस्टाइन (Eugen Goldstein Kathodenstrahlen) ने इसका नाम कैथोड किरणें रखा। वास्तव में इन किरणों को पहली बार 1869 में जर्मन भौतिकशास्त्री जोहान हित्तार्फ़ (Johann Hittorf) द्वारा देखा गया था। ये किरणें कैथोड से एनोड की ओर सीधी रेखा मेँ चलती हैं तथा काँच, जिंक सल्फाइड अथवा बेरियम प्लेटिनो साइनाइड के पर्दे पर पड़ने से चमक उत्पन्न करती हैं। उच्च गलनांक के धातु से कैथोड किरणें टकराने से एक्स-किरणें उत्पन्न होती हैं।

रेडियोऐक्टिवता Radioactivity

कुछ तत्व स्वतंत्र अवस्था मेँ अधिक समय तक नहीँ रह सकते वह धीरे धीरे अन्य तत्वों में बढता जाते हैं। हेनरी बेकुरल (Antoine Henri Becquerel) ने पता लगाया था कि युरेनियम धातु और उसके लवणों से एक विशेष प्रकार की अदृश्य किरणें निकलती हैं। ये किरणें धातुओं की पतली चादर से पार निकल जाती हैं। गैस को आयनित कर देती हैं, जिंक सल्फाइट में प्रदीप्त उत्पन्न कर देती हैं। इन किरणों को बेकुरल किरणें कहा गया। मैडम क्यूरी तथा उनके पति पियरे क्यूरी ने देखा कि इस प्रकार का गुण यूरेनियम के खनिज पिच ब्लेण्ड से प्राप्त तत्व रेडियम तथा पॉलोनियम बहतु अधिक है। बेकुरल किरणों को उत्सर्जित करने वाले तत्वों को रेडियोएक्टिव तत्व कहा गया। इस गुण को रेडियोऐक्तिवता कहते हैं।

1902 मेँ लार्ड रदरफोर्ड ने बेकुरल किरणों का अध्यन किया। उन्होंने शीशे के चौकोर बर्तन मेँ रेडियोएक्टिव पदार्थ का एक टुकड़ा रखा। इससे निकलने वाली सभी किरणों को एक विद्युत क्षेत्र मेँ से गुजरने दिया। कुछ किरणें ऋण आवेशित प्लेट की ओर मुड़ जाती हैं (β-किरणें), कुछ धन आवेशित प्लेट की ओर मुड़ती हैं (α-किरणें) और कुछ सीधी चली जाती हैं (γ-किरणें)। प्रत्येक रेडियोएक्टिवता न्यूक्लीय गुण है। प्रत्येक पदार्थ से ये तीनों किरणें नहीँ निकलतीं। कुछ पदार्थों से केवल α-अल्फा और γ-गामा किरणें ही निकलती हैं जबकि कुछ से केवल बीटा- β और गामा- γ किरणें ही निकलती हैं।

अल्फा किरणें α-Rays

रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकली ऋण आवेशित प्लेट की और मुड़ने वाली किरणें अल्फा किरणें हैं। इनके निम्नलिखित गुण हैं-

1. ये चुंबकीय तथा विद्युत क्षेत्र से विक्षेपित हो जाती हैं इनके विक्षेप की दिशा से ज्ञात होता है कि यह धनावेशित हैं।

2. इन किरणों के प्रत्येक कण पर आवेश दो इलेक्ट्रानों के आवेश के बराबर धन आवेश होता है तथा द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु या प्रोटोन के द्रव्यमान का चौगुना होता है| अर्थात प्रत्येक कण दो प्रोटोन तथा दो न्यूट्रान का बना होता है अतः अल्फा कण हीलियम नाभिक के अनुरूप होते है।

3. इन किरणों की भेदन क्षमता बहुत कम होती है।

4. इन किरणों में गैसों को आयनीकृत करने की क्षमता बहुत अधिक होती है।

5. ये किरणें कुछ पदार्थ जैसे हीरे, जिंक सल्फाइड आदि पर पड़कर प्रदीप्ति उत्पन्न करती हैं।

6. इनका वेग प्रकाश के वेग के 1/10 के क्रम का होता है।

बीटा किरणें β-Rays

रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकली हुई धनावेशित प्लेट की ओर मुड़ने वाली किरणें β-किरणें कहलाती हैं। इनके निम्नलिखित गुण हैं-

1. कैथोड किरणों के समान ये किरणें इलेक्ट्रानों से बनी होती हैं।

2. ये किरणें चुम्बकीय तथा विद्युतीय क्षेत्र में विक्षेपित हो जाती हैं।

3. ये किरणें न्यूट्रान के टूटने से बनती हैं। β-कण के रूप में इलेक्ट्रान उत्सर्जित होते हैं तथा प्रोटान बचा रहता है।

4. इनमे गैसों को आयनित करने की क्षमता अल्फा (α) किरणों से कम होती है।

5. इनका वेग प्रकाश के वेग के क्रम का होता है।

गामा किरणें γ-Rays

चुम्बकीय क्षेत्र में विक्षेपित न होकर सीधी जाने वाली किरणें गामा किरणें हैं। इनके निम्नलिखित गुण हैं-

1. इनका स्वरुप तरंगों के समान होता है। इनमे द्रव्यमान होता है और न ही आवेश।

2. ये किरणें विद्युत् तरंगों के समान दूरभेदी होती हैं। इनकी भेदन क्षमता अल्फा और बीटा किरणों की अपेक्षा तीव्र होती है। ये लोहे की 30 सेमीं तक की तह को भेद देती हैं।

3. ये किरणें विद्युत् क्षेत्र या चुम्बकीय क्षेत्र में विपेक्षित नहीं होती है। इनमे गैसों को आयनित करने की क्षमता बहुत कम होती है।

4. इन किरणों का वेग प्रकाश के वेग के बराबर होता है।

अवरक्त किरणें Infrared Rays

सूर्य के प्रकाश मेंसात रंगों के अतिरिक्त अन्य किरणें जो अदृश्य होती हैं, अवरक्त किरणें कहलाती हैं। ये अवरक्त किरणें लाल रंग से अधिक तरंगदैर्ध्य वाली होती हैं। इनके निम्नलिखित गुण होते हैं-

1. इनका तरंगदैर्ध्य दृश्य क्षेत्र की तरंगदैर्ध्य से अधिक होता है।

2. इन किरणों का तापीय प्रभाव अधिक होता है।

3. इन किरणों में उर्जा अधिक होती है।

एक्सिऑन- नया परमाण्विक कण

नये क्वांटम डायनामिक्स सिद्धांत तथा विद्युत् चुम्बक के पुराने क्वांटम सिद्धांत की अंश क्रिया के फलस्वरूप 1970 के दशक में भौतिक शास्त्रियों ने गणनाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकला था की परमाणु में एक नया प्राथमिक अं और उपस्थित होना चाहिए। यह भी अनुमान लगाया गया कि यह कण अत्यंत हलके इलेक्ट्रान से भी कहीं हल्का पर अत्यंत तीव्र प्रवेशन क्षमता वाले, न्यूट्रानों से भी अधिक क्षमता वाला होना चाहिए। इसका नाम एक्सिऑन रखा गया।

यद्यपि अभी तक वैज्ञानिकों को अपने प्रयोगों में एक्सिऑन नहीं मिला है पर उनका मत है ब्रह्माण्ड के लुप्त द्रव्य का कारण एक्सिऑन है। उनके इस प्रकार सोचने का कारण कदाचित यह है कि ब्रह्माण्ड में उपस्थित कुल द्रव्य उसके प्रसार, जो उसके निर्माण के तुरंत बाद आरम्भ हो गया था, को रोकने में असमर्थ रहा।

पहले यह समझा जाता था की ब्रह्माण्ड का लुप्त द्रव्य न्यूट्रिनो कण के रूप में मौजूद है। इस बारे में वैज्ञानिकों का यह भी मत था की वास्तव में न्यूट्रिनो इतने भार हीन नहीं हैं जितना समझा जाता है, परन्तु अब ये न्यूट्रिनो के स्थान पर एक्सिऑन  को लुप्त द्रव्य का कारण मानने लगे हैं।

पराश्रव्य ध्वनि Ultrasonic Sound

यह ध्वनि उर्जा का रूप है जो किसी पिंड में आवर्ती कम्पन से उत्पन्न होती है और तरंग गति के रूप में विचरण करती है। इसके संचरण के लिएऐसे द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है, जो अवतरित और प्रत्यास्थ (Elastic) हो। प्रश्रव ध्वनि विज्ञान (Acoustics) की वह शाखा है, जिनमे उन ध्वनि आवृतियों (Sound Frequencies) पर विचार किया जाता है जी श्रव्य परास से ऊँची हो, अर्थात जिनकी आवृत्ति 20 किलो साइकिल या उससे अधिक हो।

1935 से पूर्व इस विषय का नाम साधारण रूप से पराध्वनिक (Supersonic) था, लेकिन बाद में उच्च आवर्ती ध्वनि के लिए पराश्रव्य (Ultrasonic) शब्द अधिक प्रचलित हो गया, क्योंकि सुपरसोनिक शब्द को अनेक अर्थों में इस्तेमाल किया जाने लगा। सुपरसोनिक शब्द को उस गति के लिए काम में लाया जाता है जो ध्वनि के वग से अधिक हो।

पराश्रव्य के जनन के लिए मुल्ता एक ट्रांसड्यूसर (Transdusar) और निवेश (Input) के लिए उपयुक्त वोल्टता पूर्ति की आवश्यकता पड़ती है। ट्रांसड्यूसर एक ऐसी युक्ति है, जिसके द्वारा के विभिन्न रूपों को उच्च आवर्ती ध्वनि तरंगों में परिवर्तित किया जाता है। आजकल क्वार्टज़ और रोशेल लवण के क्रिस्टल सर्वाधिक विख्यात और सबसे अधिक काम में लाये जाते हैं। यदि क्रिस्टल पर प्रत्यावर्ती विद्युत् क्षेत्र का प्रभाव डाला जाए, तो क्रिस्टल विकृत हो जाता है और इसलिए वह प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति को उन्मुक्त करने लगता है, जोकि क्रिस्टल की प्राकृतिक आवृत्ति के बराबर होती है। अनुनाद (resonance) के कारण यह उच्च दोलन आयाम (Vibration amplitude) प्रेषित करता है।

होलोग्राफी Holography

होलोग्राफी का शाब्दिक अर्थ सम्पूर्ण रिकॉर्ड है। इस तकनीक से किसी वस्तु का न केवल सच्चा प्रतिविम्ब रिकॉर्ड होता है, वरन वह मूल वस्तु का अत्यधिक सटीक चित्र भी होता है।साथ ही होलोग्राफी से फोटोग्राफिक प्लेट पर वस्तु का स्थायी चित्र बन जाता है। निश्चय ही यह प्रचलित फोटोग्राफी तकनीक से एकदम भिन्न है। यह एक महँ खोज थी। व्यतिकरण द्वारा त्रिविमीय प्रतिविम्ब करने की सफलता लेसर किरणों के संसक्त प्रकार के उपलब्ध हो जाने पर ही मिली। पर आजकल साधारण (असंसक्त) प्रकाश से ही होलोग्राफ प्राप्त कर लिए जाते हैं, यद्यपि इनके लिए जटिल उपकरणों की आवश्यकता होती है।

यद्यपि त्रिविमीय होलोग्राफी अभि तक अपनी आरंभिक अवस्था में है पर उसे अनेक कामों के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। इन्टरफेरोमेट्री (Interferometry)  में उसका सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता रहा है। इन्टरफेरोमेट्री में व्यतिकरण (interference) की सहायता से ठोस द्रव और गैसीय पदार्थों के गुणों का अध्ययन किया जाता है। इस तकनीक से होलोग्राफी के इस्तेमाल से इतने सटीक नतीजे प्रप्थोते हैं, जो किसी अन्य विधि से प्राप्त नहीं होते है। होलोग्राफी और इन्टरफेरोमेट्री का उपयोग करके विस्फोट, क्षरण प्लाज्मा अवस्था आकदी का अध्ययन किया जा सकता है। लेसर किरणों के उपयोग से अत्यंत कम समय (सेकेण्ड के अरबवें भाग से भी कम समय) में होलोग्राम प्राप्त हो जाता है, इसलिए होलोग्राम की मदद से उन क्रियाओं का भी भली-भांति अध्ययन किया जा सकता है जो अत्यंत तीव्र गति से चलती हैं। होलोग्राफी से संभाव्य बहुत अधिक हैं। इसकी मदद से कंप्यूटर की (key) में, प्रकाश पैटर्नों के रूप में जानकारी भरी जा सकती है।

हाईजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत Heisenbarg’s Uncertainity Principle

इस सिद्धांत के अनुसार किसी छोटे कण या इलेक्ट्रान का स्थान (Position) तथा संवेग (Momentum) दोनों का वास्तविक ज्ञान असंभव है, क्योंकि जब इलेक्ट्रान कण के समान व्यवहार करता है, तो इसके स्थान का निर्धारण किया जा सकता है, परंतु वेग व संवेग अनिश्चित होता है। जब यह एक तरंग के रूप में व्यवहार करता है, तब इसका वेग व संवेग निर्धारित किया जा सकता है, परन्तु तब इसका स्थान अनिश्चित होगा। इसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त लिया जा सकता है-

(Δx) (Δp) = h/2π

जबकि Δx के स्थान सम्बन्धी अनिश्चितता तथा Δp संवेग सम्बन्धी अनिश्चितता है।

इसी प्रकार Δx कम हो तो इलेक्ट्रान के स्थान का निर्धारण किया जा सकता है, परन्तु संवेग सम्बन्धी अनिश्चितता बढ़ जाएगी और संवेग निर्धारण के स्थान में निर्धारण की अनिश्चितता बढ़ेगी।

अनुगमन वेग Drift Velocity

जब चालक को सेल या बैटरी के सिरे से जोड़ दिया जाता है, तो विद्युत् वाहक बल (वि.वा.ब. Electro Motive force) के कारण चालक के प्रत्येक बिंदु परएक समान विद्युत् क्षेत्र स्थापित हो जाता है और तब स्वतंत्र इलेक्ट्रान पर बल लगता है। इलेक्ट्रान रहित परमाणु (धन आयन) अपनी संतुलित स्थिति के इधर-उधर कम्पन करने लगते हैं तथा स्वतंत्र इलेक्ट्रान इनसे टकराते रहते हैं। विद्युत् क्षेत्र लगाने से इलेक्ट्रानों की अनियमित गति के साथ-साथ विद्युत् क्षेत्र की विपरीत दिशा में इनका अनुगमन होने लगता है। अयन से टकराने से पहले इनका वेग अधिकतम तथा टकराने के ठीक बाद, क्षण भर के लिए इनका वेग शून्य हो जाता है। इस प्रकार की टक्करों को अप्रत्यास्थ टक्कर (inelastic collision) कहते हैं। विद्युत् क्षेत्र लगाने के बाद क्षेत्र किम दिशा के विपरीत दिशा में स्वतंत्र इलेक्ट्रानों का औसत वेग अनुगमन वेग (drift velocity) कहलाता है। इसे ‘u’ से प्रदर्शित करते हैं तथा इसका मान 1 सेमी. प्रति सेकंड या इससे भी कम होता है। जिस प्रकार सामान्यतः वायु के कण अनियमित रूप से गतिमान रहते है, परन्तु दबांतर के कारण परस्पर टकराते हुए भी इनका अनुगमन होता है, जिसके फलस्वरूप वायु प्रवाह होता है। ठीक इसी प्रकार स्वतंत्र इलेक्ट्रान अनियमित रूप से गतिमान रहते है, परन्तु विभवान्तर के कारण परस्पर टकराते हुए भी इनका अनुगमन होता है, जिसके फलस्वरूप धारा का प्रवाह होता है। अतः बैटरी का विभवान्तर इलेक्ट्रानों को त्वरित गति नहीं प्रदान कर पाता, वरन यह उन्हें तार की लम्बाई की दिशा में एक छोटा नियत वेग (अनुगमन वेग) ही दे पाता है, जो की इलेक्ट्रानों की अनियमित गति के ऊपर आरोपित रहता है। इस अनुगमन वेग के कारण ही धारा का प्रवाह, उर्जा का स्थानान्तरण तथा चुम्बकीय क्षेत्र की उत्पत्ति होती है।

उभय वर्तन Double Refraction

जब प्रकाश की किरणें कैलसाइट अथवा क्वार्ट्ज (Calcite or Quartz Crystal) तब दो किरणों में विभाजित हो जाती। अतः यदि किसी बिंदु को इन क्रिस्टलों में सी होकर देखा जाए हैं, तो उसके दो प्रतिविम्ब प्राप्त होंगे, प्रकाश की एक किरण के किसी विशेष क्रिस्टल में जाने पर दो भागों में वोभाक्त होना उभय वर्तन (Double Refraction) कहलाता है। इसके अतिरिक्त इन निर्गत किरणों के अध्ययन से यह पता लगता है कि, इनमे से एक किरण अपवर्तन के नियम का पालन करती है परन्तु दूसरी नहीं। जो किरण अपवर्तन के नियम का पालन करती है उसे साधारण तथा जो अपवर्तन के नियम का पालन नहीं करने वाली किरण को असाधारण (Extraordinary) किरण कहते हैं।

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