Friday, 22 September 2017

भारतीय वित्तीय व्यवस्था

भारतीय वित्तीय व्यवस्था

सरल रूप में वित्त (Finance) की परिभाषा 'धन या कोश (फण्ड) के प्रबन्धन' के रूप में की जाती है। किन्तु आधुनिक वित्त अनेकों वाणिज्यिक कार्यविधियों का एक समूह है। वित्‍तीय प्रणाली से अभिप्राय एक संस्‍थागत प्रबंध है जिसके माध्‍यम से अर्थव्‍यवस्‍था में बचतों को जुटाकर अंतिम उधारकर्ताओं/निवेशकों के बीच कारगर रूप से आबंटित कर दिया जाता है। यह प्रणाली वित्‍त बाजारों और संस्‍थाओं के एक नेटवर्क के जरिए संचालित होती है, जिन्‍हें मोटे तौर पर मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार में वर्गीकृत किया जाता है। पहले किस्‍म का बाजार अल्‍पा‍वधि निधियों का लेन-देन करता है जबकि बाद वाला बाजार दीर्घावधि निधियों का लेन-देन करता है। मुद्रा बाजार के कार्यों के विनियमन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक सर्वोच्‍च प्राधिकारी है। जबकि पूंजी बाजार की कार्यप्रणाली का पर्यवेक्षण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) करता है।

भारतीय वित्‍तीय प्रणाली के प्रमुख घटक है: बैंक, वित्‍त संस्‍थाएं, गैर-बैंकिंग वित्‍त कंपनियां और जोखिम पूंजी कंपनियां और उद्यम पूंजी कंपनियां। बैंक भारत में संस्‍थागत ऋण का सबसे महत्‍वपूर्ण स्रोत हैं और इनमें राष्‍ट्रीयकृत बैंक; क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक; सहकारी बैंक; विदेशी बैकों सहित निजी क्षेत्र के बैंक शामिल हैं। राष्‍ट्रीय और राज्‍य दोनों स्‍तरों पर अनेकों वित्‍त संस्‍थाएं स्‍थापित की गई हैं जो उद्योग की विविध प्रकार की वित्‍तीय आवश्‍यकताओं को पूरा करती हैं। इनमें अखिल भारतीय विकास बैंक; विशिष्‍ट वित्‍त संस्‍थाएं, निवेश संस्‍थाएं; राज्‍य वित्‍त निगम तथा राज्‍य औद्योगिक विकास निगम शामिल हैं। इसके अलावा, गैर-बैंकिंग वित्‍त कंपनियां एक ऐसा संस्‍था समूह है जो कई प्रकार से वित्‍तीय मध्‍यस्थता का कार्य करता है जैसे कि जमा राशियां स्‍वीकार करना, ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना, पट्टे पर देना, भाड़े पर खरीद करना, आदि। दूसरी ओर, उद्यम पूंजी लघु और मध्‍यम उद्यमों के गठन के लिए उनके विकास के प्रारम्भिक चरणों में निधियन का महत्‍वपूर्ण स्रोत है।

 

मुद्रा बाजार कारक

मुद्रा बाजार के अल्पकालिक धन और वित्तीय आस्तियों (एसेस्ट्स) मुद्रा का समीपतम विकल्प हैं|शब्द अल्पकालिक का अर्थ आम तौर पर एक वर्ष के लिए है और मुद्रा का समीपतम विकल्प का प्रयोग उन वित्तीय अस्तियों (एसेस्ट्स) न्यूनतम लेन-देन लागत के साथ पैसे में परिवर्तित किया जा सके।

मुद्रा बाजार के कुछ महत्त्पूर्ण कारकों पर नीचे संक्षेप में चर्चा की गयी है:
 

1. मांग/सूचना मुद्रा

मांग/सूचना मुद्रा का लेनदेन अंशकालिक होता है| जब मुद्रा को एक दिन के लिए(रातोरात) उधार लिया अथवा दिया जाता है तो उसे मांग मुद्रा कहते हैं| उधार अवधि में रविवार और अवकाश को सम्मलित नहीं किया जाता है| इस प्रकार से जिस मुद्रा को एक दिन उधार लेकर अगले कार्य दिवस में चुकाया जाता है(बीच में आने वाले अवकाशों की अवहेलना करते हुए) वह “मांग मुद्रा” है| जब मुद्रा 1-14 दिन के लिए उधार ली जाती है, तो उसे “सूचना मुद्रा कहते हैं| इस प्रकार के लेन-देन के लिए किसी सहायक प्रतिभूति की आवशयकता नहीं होती है|

 

2. अंतर-बैंकीय अवधि मुद्रा

14 दिनों से परे परिपक्वता की जमा के लिए अंतर-बैंक बाजार, अवधि मुद्रा बाजार के रूप में जाना जाता है। मौजूदा नियम के अनुसार  निर्दिष्ट संस्थाओं को 14 दिनों से अधिक उधार देने की अनुमति नहीं है शेष प्रविष्टि प्रतिबंध मांग/सूचना मुद्रा के अनुसार ही हैं।

3. ट्रेजरी बिल्स:

 ये एक तरह के बॉन्ड (डेट सिक्युरिटीज) हैं, जिनकी मच्योरिटी एक साल से कम होती है। टी-बिल्स भारत सरकार की ओर से आरबीआई द्वारा जारी अल्पकालीन प्रतिभूतियां हैं ये 91,182 और 364 दिन पर मैच्योर होती हैं| इसमें वाणिज्यिक बैंक, प्राइमरी डीलर, म्यूचुअल फंड, कॉर्पोरेट्स, संस्थान, प्रोविडेंट और पेंशन फंड और बीमा कंपनियां भाग ले सकती हैं|समय-समय पर इनकी नीलामी होती है और इनकी ट्रेडिंग सेकेंडरी मार्केट में होती है जो काफी सक्रिय है|टी-बिल्स फेस-वैल्यू पर छूट के साथ जारी किए जाते हैं और मैच्योरिटी पर सममूल्य पर रिडीम होते हैं| आमदनी और खर्च के शॉर्ट-टर्म असंतुलन को कम करने के लिए इन्हें इशू किया जाता है।  लॉन्ग मच्योरिटी वाले बॉन्ड डेट सिक्युरिटीज कहलाते हैं।

 

4. जमा प्रमाणपत्र

मुद्रा बाजार लिखतों के विस्‍तार को और अधिक बढ़ाने और निवेशकों को अपनी अल्‍पावधि अतिरिक्‍त निधियों के अभिनियोजन में ज्‍यादा मौके प्रदान करने की दृष्टि से भारत में 1989 में जमा प्रमाणपत्र शुरू किए गए थे ।  वर्तमान में जमा प्रमाणपत्र जारी करने के लिए दिशा-निर्देश भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी, समय-समय पर यथा-संशोधित, निदेशों द्वारा शासित होते  हैं। जमा प्रमाणपत्र  असंरक्षित, विनिमेय प्रॉमिसरी नोट है जो फेस वैल्यू पर छूट के साथ जारी होता है| इसकी अवधि 7 दिन से 12 माह की है| इस पर इश्यूएंस स्टैंप ड्यूटी लगती है और सामान्यत: डीमैटीरियलाज्ड रूप में जारी होता है| यह विनिमेय है और जारी होने के 15दिन बाद से एंडोर्समेंट और डिलीवरी द्वारा ट्रांस्फर होता है| इस पर टीडीएस नहीं लगता

 

5. वाणिज्यिक पत्र

वाणिज्यिक पत्र, वचन पत्र के रूप में जारी की जानेवाली एक गैर-जमानती मुद्रा बाज़ार लिखत है जिसे भारत में 1990 में पहली बार जारी किया गया। इसे जारी करने का उद्देश्‍य यह कि उच्‍च दर्जे के कार्पोरेट उधारकर्ता अपने अल्‍पावधि उधारों के स्रोतों का विवधीकरण कर सकें और निवेशकों को एक अतिरिक्‍त लिखत मुहैया कराया जा सके।

वाणिज्यिक पत्र एक मुद्रा बाजार इंस्ट्रूमेंट है जिससे कॉर्पोरेट्स अल्प-कालीन धन एकत्रित हैं| आरबीआई दिशानिर्देशों के अनुसार जारी किया जाता है| यह फेस वैल्यू पर छूट के साथ जारी होता है| यह प्रॉमिसरी नोट का प्रकार है और डीमैटीरिलाज्ड रूप में रखा जाता है| इस पर प्रामरी इश्यू में इश्यूएंस स्टैंप ड्यूटी लागती है| इसकी रेटिंग अनिवार्य रूप से चार क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से किसी एक द्वारा होनी है| यह अधिकतम 1 वर्ष के लिए जारी होगा| यह डीमैटीरियलाइज्ड रूप में जारी हो सकता है|

 

पूँजी बाजार कारक

पूंजी बाजार में आम तौर पर निम्नलिखित दीर्घकालिक अवधि (यानी एक वर्ष से अधिक अवधि के वित्तीय कारक) के लिए होते हैं  ; इक्विटी सेगमेंट में इक्विटी शेयर, अधिमान शेयर, परिवर्तनीय अधिमान शेयर, गैर परिवर्तनीय अधिमान शेयर आदि और ऋण खंड में डिबेंचर, जीरो कूपन बांड, भारी डिस्काउंट बांड आदि|

 

हाइब्रिड उपकरण

हाइब्रिड उपकरण में इक्विटी और डिबेंचर दोनों प्रकार की सुविधाएँ है| इस प्रकार कारक हाइब्रिड उपकरण कहलाते हैं| उदाहरण- परिवर्तनीय डिबेंचर, वारंट आदि|

 

वित्तीय बाज़ार

वितीय बाजार एक बाज़ार है जहाँ वितीय कारक का विनिमय अथवा व्यापार होता है तथा यह व्यापार से प्राप्त एसेट्स के मूल्य निर्धारण में सहायक होता है|इसे मूल्य खोज प्रक्रिया भी कहते हैं|

 

वित्तीय बाज़ार के प्रकार

 

1.   विदेशी मुद्रा बाज़ार -  विदेशी मुद्रा बाजार, विश्व की मुद्राओं के क्रय-विक्रय (व्यापार) का बाजार है जो विकेन्द्रित, चौबीसों घंटे चलने वाला, काउन्टर पर किया जाने वाले (over the counter) कारोबार है। अन्य वित्तीय बाजारों की अपेक्षा यह बहुत नया है और पिछली शताब्दी में सत्तर के दशक में आरम्भ हुआ। फिर भी सम्पूर्ण कारोबार की दृष्टि से यह सबसे बड़ा बाजार है। विदेशी मुद्राओं में प्रतिदिन लगभग ४ ट्रिलियन अमेरिकी डालर के तुल्य कामकाज होता है। अन्य बाजारों की तुलना में यह सबसे अधिक स्थायित्व वाला बाजार है।

 

2.   मुद्रा बाज़ार :

वित्त की भाषा में, मुद्रा बाज़ार का अभिप्राय अल्पकालिक ऋण लेने और देने के लिए वैश्विक वित्तीय बाज़ार से है। यह वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिए अल्पकालिक अवधि की नकदी/तरलता का वित्त पोषण प्रदान करता है। मुद्रा बाजार वह जगह है जहां अल्पकालिक कार्यकाल दायित्व जैसे

ट्रेज़री बिल, वाणिज्यिक पत्र/पेपर और बैंकरों की स्वीकृतियां आदि खरीदे और बेचे जाते हैं।

 

3.   पूँजी बाजार:

पूंजी बाजार, प्रतिभूतियों का बाजार है, जहां कंपनियां और सरकार लंबे समय के लिए धन जुटा सकते हैं। यह वह बाजार है जहां पैसा एक साल या इससे अधिक समय के लिए दिया जाता है। पूंजी बाजार मे शेयर बाजार और बांड बाजार भी शामिल है।

यह कंपनियों को उपलब्‍ध एक ऐसा बाजार है जो उनकी दीर्घावधिक निधियों की जरुरतों को पूरा करता है। यह निधियां उधार लेने और उधार देने की सभी सुविधाओं और संस्‍थागत व्‍यवस्‍थाओं से संबंधित है। अन्‍य शब्‍दों में, यह दीर्घावधि निवेश करने के प्रयोजनों के लिए मुद्रा पूंजी जुटाने के कार्य से जुड़ा है। इस बाजार में कई व्‍यक्ति और संस्‍थाएं (सरकार सहित) शामिल हैं जो दीर्घावधि पूंजी की मांग और आपूर्ति को सारणीबद्ध करते हैं और उसकी मांग करते हैं। दीर्घावधि पूंजी की मांग मुख्‍य रूप से निजी क्षेत्र विनिर्माण उद्योगों, कृषि क्षेत्र, व्‍यापार और सरकारी एजेंसियों की तरफ से होती है। जबकि पूंजी बाजार के लिए निधियों की आपूर्ति अधिकतर व्‍यक्तिगत और कॉर्पोरेट बचतों, बैंकों, बीमा कंपनियां, विशिष्‍ट वित्‍त पोषण एजेंसियों और सरकार के अधिशेषों से होती है। भारतीय पूंजी बाजार स्‍थूल रूप से गिल्‍ट एज्‍ड बाजार और औद्योगिक प्रतिभूति बाजार में विभाजित है|

 

4.   ऋण बाजार:

ऋण बाजार वह है जहाँ बैंक, वित्तीय संस्थायें  और एनबीएफसी के कॉर्पोरेट और व्यक्ति  लघु,मध्यम और लंबी अवधि के ऋण का प्रबंध करते हैं।

 

इस वित्‍तीय मंत्र के मद्देनजर, केंद्र और राज्‍य सरकारें उद्यमियों की जरुरतों को पूरा करने के लिए हर तरह से प्रयास कर रही हैं। ये प्रयास विभिन्‍न वित्‍तीय योजनाओं और मंत्रालयों, सरकारी और प्राइवेट बैंकों, लघु उद्योग विकास संगठन, राष्‍ट्रीय लघु उद्योग निगम लि., राज्‍य वित्‍त निगमों, आदि द्वारा प्रस्‍तुत निधियन विकल्‍पों के रूप में हैं। इस प्रकार, भारत का वित्‍तीय तंत्र बहुत मजबूत है जो देश मे व्‍यापारी इकाइयों की स्‍थापना करने के लिए एक सुदृढ़ आधार प्रदान करने में सक्षम है।

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