Tuesday, 12 September 2017

नाभिकीय रिएक्टर अथवा परमाणु भट्टी

नाभिकीय रिएक्टर अथवा परमाणु भट्टी - Nuclear Reactor Or Atomic Pile

इसमें नाभिकीय विखंडन की नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया के द्वारा उर्जा उत्पन्न की जाती है, जिसे अनेक लाभदायक कार्यों में उपयोग किया जाता है। एक आधुनिक रिएक्टर में निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं-

ईंधन Fuel

यह रिएक्टर का सबसे प्रमुख भाग है। यही वह पदार्थ है जिसका विखंडन किया जाता है। इस कार्य के लिए U-235 या Pu-239 प्रयोग किये जाते हैं।

मंदक Moderator

इसका कार्य न्यूट्रानों की गति को मंद करना है। इसके लिए भारी जल, ग्रेफाइट अथवा बेरिलियम ऑक्साइड प्रयुक्त किये जाते हैं। भारी जलसबसे अच्छा मंदक है।

शीतलक Coolant

विखंडन होने पर अत्यधिक मात्र में ऊष्मा उत्पन्न होती है, जिसको शीतलक द्वारा हटाया जाता है। इसके लिए वायु, जल अथवा कार्बन डाई ऑक्साइड को रिएक्टर में प्रवाहित करते हैं। इस ऊष्मा को भाप बनाने के काम में लिया जाता है जिससे टरबाइन चलाकर बिजली उत्पन्न की जाती है।

परिरक्षक Shield

रिएक्टर से कई प्रकार की तीव्र किरणें निकलती हैं जिनसे रिएक्टर के पास कम करने वालों को हानि हो सकती है।इससे उनकी रक्षा करने के लिए रिएक्टर के चारों तरफ कंक्रीट की मोटी-मोटी दीवारें बना दी जाती हैं।

नियंत्रक Controller

रिएक्टर में विखंडन की गति पर नियंत्रण करना आवश्यक है, इसके लिए कैडमियम की छड़ें प्रयुक्त की जाती हैं। रिएक्टर में इन छड़ों को रखकर आवश्यकता अनुसार अन्दर बाहर खिसकाकर विखंडन की गति कम अथवा अधिक की जाती है।

संसार का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर सन 1942 में फर्मी के निर्देशन में शिकागो यूनिवर्सिटी में बना था। जिसमे U-235 ईंधन के रूप में प्रयोग किया गया था। इसमें ग्रेफाइट मंदक के रूप में कार्य करता था।

 

सूर्य की उर्जा Solar Energy

सूर्य लगातार प्रकाश व ऊष्मा के रूप में अति उच्च दर से उर्जा का उत्सर्जन कर रहा है। ज्योतिष व भूगर्भ सम्बन्धी गणनाओं के आधार पर यह पता चला है की सूर्य द्वारा यह उत्सर्जन करोड़ों वर्षों से हो रहा है। रासायनिक क्रियाओं से इतनी उर्जा का उत्सर्जन संभव नहीं है, क्योंकि सूर्य किसी वाह्य पदार्थ (जैसे कार्बन) से बना होता, तो भी इसके पूर्ण दहन से इतनी बड़ी दर पर उर्जा केवल कुछ हजार वर्षों तक ही मिल पायेगी।

वास्तव में सूर्य की अपार उर्जा का स्रोत हल्के नाभिकों का संलयन (Fusion) है। सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 90% अंश हाइड्रोजन तथा हीलियम है। शेष 10% अंश में अन्य तत्व हैं जिनमे अधिकांश हलके तत्व हैं। सूर्य के वाह्य पृष्ठ का अनुमानित ताप 6000°C तथा इसके भीतरी भाग का अनुमानित ताप 15,000,000°C सेंटीग्रेड है। इतने ऊँचे ताप पर हाइड्रोजन हीलियम में लगातार परिवर्तित होता रहता है और इस प्रक्रिया को संलयन कहते हैं तथा सूर्य में उपस्थित सभी तत्वों के परमाणुओं से बाहरी इलेक्ट्रान निकल जाते हैं, अतः वे तत्व नाभिकीय अवस्था में होते हैं। इन नाभिकों का वेग इतना अधिक होता है की इनके परस्पर टकराने से इनका संलयन स्वतः  होता रहता है तथा अपार उर्जा उत्पन्न होती रहती है।

 

कार्बन साइकिल Carbon Cycle

सन 1939 में अमरीकन वैज्ञानिक बेथे (बेथे) ने यह बताया कि सूर्य के, चार हाइड्रोजन नाभिकों (4 प्रोटानों) एक हीलियम नाभिक में संलयन सीधे न होकर, कई ताप-नाभिकीय (Thermo-Nuclear Reactions) की एक साइकिल के द्वारा होता है जिसमें कार्बन एक उत्प्रेक का कार्य करता है। इस साइकिल को कार्बन साइकिल कहते हैं। इस प्रकार पूरी कार्बन साइकिल में 4 हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर एक हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं।

 

प्रोटॅान प्रोटॅान साइकिल H-H Cycle

नये नाभिकीय आंकड़ों के आधार पर अब विश्वास किया जाता है, की सूर्य में कार्बन साइकिल की अपेक्षा एक अन्य साइकिल की अधिक सम्भावना है, जिसे प्रोटॅान- प्रोटॅान साइकिल कहते हैं। इस साइकिल में भी कई अभिक्रियाओं के द्वारा हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम के नाभिक का निर्माण करते हैं।

 

 

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